खरसावां के मां आकर्षिणी मंदिर धार्मिक आस्था केन्द्र में
परिवर्तित है, देवी के आध्यात्मिक शक्ती से खीच लाती है भक्तों
को, देवी स्थल पर मांगी गई हर मुरादे होती है पूरी
(15 जनवरी मां आकर्षिणी आखान यात्रा पर विशेष)
kharsawan मनोरमा पहाडियों से घिरा खरसावां के देवी माता का आकर्षिणी पूजा स्थल अपने प्राकृतिक दृश्यों एवं आध्यात्मिक शक्ती के कारण प्राचीन समय से क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक आस्था के केन्द्र के रूप में जाना जाता है। देवी माता का आकर्षिणी मंदिर खरसावां प्रखण्ड मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूरी पर बसा है। आकर्षिणी पहाडी पर्यटन स्थल के साथ एक धार्मिक आस्था केन्द्र के रूप में परिवर्तित हो चुका है। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण इस देवी स्थल पर मान्यता के अनुसार मांगी गई हर मुरादे पूरी होती है। भक्तों का विश्वास है कि यह ग्राम देवी अपने आकर्षण शक्ति से न केवल भक्तों को अपने दरबार में हाजिरी लगाने के लिए मजबुर करती है। बल्कि दूर दराज के बादलों को भी आकृष्ट कर बर्षा कराने में सफल होती है। संभवत इस शक्ति के कारण इस देवी स्थल का नाम आकर्षिणी पडा। मान्यता के अनुसार ओडिसा भाषा में इसे आकशेनी के नाम से जाना जाता है, जिसकी उत्पति संस्कृत शब्द कर्षण से हुई। कर्षण का अर्थ है भूमि को खोदना। इस तरह आकर्षण का अर्थ नही खोदा जाने वाला। चूकि देवी का स्वर्ण मंदिर यानी गर्भ गृह विशाल चटटानों के गुफाओं में स्थित है।
महाभारत काल से जुडा है देवीस्थल का संबध
आकर्षिणी देवीस्थल का संबध महाभारत काल से भी जोडा जाता है। कहते है कि लाक्षागृह प्रकरण के अनुसार लाह का महल बनाने के लिए प्रचुर मात्रा में लाह की जरूरत थी जो छोटानागपुर में ही संभव था। लाक्षागृह दहन के पश्चात पांडव इस क्षेत्र में आए थे। इसी क्षेत्र में भीम ने हिड़िब का वध कर हिड़िबा से विवाह किया था। संस्कृत महाभारत से ज्ञात होता है कि घटोत्कच किसी बडे़ पत्थर देवी की पूजा करते थे। वैसे तो संपूर्ण झारखण्ड में देवी.देवता पत्थरों के रूप में मिलतें है। पंरतु आकर्षिणी का स्वरूप इन सब में सबसे बडा है। इससे इस बात को बल मिलता है कि घटोत्कच की आराध्य देवी यही थी
कई जगह स्थापित है आकर्षिणी के सात बहने
स्थानीय के अनुसार आकर्षिणी माता के सात बहने अलग अलग जगहों में स्थापित होकर पूजी जाती है। देवी खिचींग उडीसा में, रंकिणी जादंगोडा के कापाडगादी में, द्वारर्षिणी खरसावां के हुडागदा में, मुमुक दोरह विषेईगोड़ा खरसावां में, केरा देवी चक्रधरपुर में, देवी कंसरा कसरा में, तथा देवह नेडी दोरह देवी मां आकर्षिणी की बहने है। क्षेत्रवार माता आकर्षिणी सहित इन बहनों का भी अत्यधिक महत्व है।
विभिन्न स्थानो में होती है पाठ
खरसावां के चिलकू गांव में मदरू पाठ व जठिया पाठ, बीटापुर में बिटठापाठ, सीनी में गांरगाडिया पाठ, जमशेदपुर के दलमा में दलमा पाठ, पोटका में हरना पाठ, एवं सरायकेला में भुरसा पाठ के रूप में जाने जाते है।
चार पूजा परंम्पराओं का होता है आयोजन
आकर्षिणी माता के मंदिर में चार पूजा परंम्पराओं का अयोजन होता है। जांताल पूजा सावन माह के दसवीं को आयोजित की जाती है। इस तिथि में देवी आकर्षिणी को स्नान कराया जाता है। जांताल पूजा में 112 मौजा के किसान इस पूजा में भाग लेते है। इसका उदेश्य यह है कि धान की खेती के लिए बर्षा की कमी न हो। सृष्टि के लिए की जाने वाली इस पूजा में आदिवासी युवक व युवती एक साथ नृत्य करते है। मकर संक्राति 14 जनवरी के दिन सुबह से भक्तों का तांता लगा रहता है। जबकि 15 जनवरी को आखान यात्रा में भी देवी से आशीर्वाद लेकर नव वर्ष का शुभारंभ करते है।
आखान यात्रा का है खास महत्व
यज्ञों में जो महत्व अश्वमेघ का है। पर्वतों में जो महत्व हिमालय का है, उसी तरह यात्राओं में आखान यात्रा को भी उतना ही महत्वपूर्ण मानते हुए नव वर्ष की शुरूआत की जाती है।