राजनगर के ईचा में चौत्र नवरात्रि पर बासंती पूजा और
छऊ उत्सव की भव्य परंपरा, दिखा भक्ति और उत्सव का संगम,
कलाकारों ने दी भव्य प्रस्तुती, दर्शक हुए मंत्रमुग्ध,
Rajnagar राजनगर प्रखंड अंतर्गत ईचा में चौत्र माह के नवरात्रि में माँ बासंती (दुर्गा) की पूजा सदियों से पारंपरिक रूप से आयोजित की जाती है। यह इलाका कोल्हान क्षेत्र से सटा हुआ है और यहाँ कभी ईचा पीड़ जमींदार का आधिपत्य था। आज भी माँ बासंती की आराधना यहाँ पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ होती है। प्रत्येक वर्ष इस पर्व के दौरान कोल्हान क्षेत्र के विभिन्न गांवों से एक हजार से अधिक श्रद्धालु ईचा पहुँचते हैं। माँ की पूजा के साथ-साथ यहाँ एक पारंपरिक मेला भी आयोजित होता है। जो स्थानीय संस्कृति, हस्तशिल्प और ग्रामीण उत्सवधर्मिता को जीवंत करता है। नृत्य की भव्य प्रस्तुती देकर दर्शको मंत्रमुग्ध दिया। वही पूरी रात दर्शक छऊ नृत्य का लृफ्त उठाते रहे। विभिन्न नृत्य दलो की भव्य प्रस्तुती देकर दर्शको मंत्रमुग्ध दिया। वही पूरी रात दर्शक छऊ नृत्य का लृफ्त उठाते रहे। इस आयोजन में भक्ति और उत्सव का संगम दिखा।
रात भर गूंजता है छऊ नृत्य का ताल
चौत्र नवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशेष छऊ उत्सव का आयोजन होता है, जो पूरी रात चलता है। यह कार्यक्रम स्थानीय छऊ कलाकारों के लिए न केवल सांस्कृतिक मंच प्रदान करता है, बल्कि उनकी कला को संरक्षित और प्रोत्साहित भी करता है। विशेष बात यह है कि इस भव्य आयोजन के लिए सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिलता, इसके बावजूद गाँव वाले और ईचा राज परिवार मिलकर इसे हर साल आयोजित करते हैं।
ईचा का ऐतिहासिक मंदिर और सांस्कृतिक विरासत
ईचा गाँव के मध्य स्थित श्री श्री रघुनाथ जी मंदिर अत्यंत प्राचीन और भव्य है। यहाँ प्रतिदिन पूजा-अर्चना एवं भोग प्रसाद का आयोजन होता है। इसी मंदिर के नाम पर वर्ष 1924 में श्रीश्री 108 श्री रघुनाथ महाप्रभु छऊ नृत्य कला केन्द्र की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य कोल्हान क्षेत्र की छऊ कला को संरक्षित करना है।
छऊ नृत्य के दो पारंपरिक अखाड़े, गाँव के गर्व
ईचा के दो छऊ नृत्य अखाड़े हैं, जिनसे कई प्रतिष्ठित नृत्य कलाकार निकले हैं। इन्हीं में से एक हैं पद्मश्री पंडित श्यामा चरण पति, जो इस संस्था के अध्यक्ष एवं गुरु रहे। वे हर वर्ष माँ बासंती पूजा के अवसर पर छऊ नृत्य प्रतियोगिता एवं प्रदर्शन कराते थे। उनके निधन के बाद संस्था और गाँव की परंपरा को आगे बढ़ाने का दायित्व तपन कुमार पटनायक को सौंपा गया।
गुरु तपन कुमार पटनायकः कला, समर्पण और सेवा के प्रतीक
गुरु तपन कुमार पटनायक, जो संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं और पूर्व में राजकीय छऊ नृत्य कला केन्द्र सरायकेला के निदेशक रह चुके हैं। अब इस संस्था के अध्यक्ष एवं गुरु हैं। 2022 में सेवा निवृत्त होने के बाद भी वे लगातार ग्रामीण बच्चों और बच्चियों को निःशुल्क छऊ नृत्य प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनकी कला सेवा का दायरा केवल ईचा तक सीमित नहीं है, बल्कि वे खरसावां, सरायकेला, आदित्यपुर, रांची, चाईबासा, जमशेदपुर और बोकारो जैसे शहरी इलाकों में भी प्रशिक्षण दे रहे हैं।
छऊ उत्सव में लोक संस्कृति की जीवंत झलक
नवरात्रि के अवसर पर भव्य छऊ उत्सव का आयोजन हुआ। इसमें दुबील, चन्दन खिरी, गितिलादेर, कोटार धारा, सरायकेला, ईचा और जंघिया (डालिमा) के छऊ दलों ने भाग लिया। सभी दलों को पुरस्कार एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
जनसहयोग और परंपरा का अद्भुत संगम
इस आयोजन की सफलता में ईचा राज परिवार समेत कई प्रमुख व्यक्तियों की अहम भूमिका रही, जिनमें जलेश्वर सिंहदेव, वासू सिंहदेव, प्रदीप सिंहदेव, श्री पति, होली कुम्हार, हेमंत सिंहदेव, फागु बोदरा शामिल रहे। संस्था के सचिव बैद्धनाथ सिंहदेव भी लगातार छऊ उत्सव के आयोजन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
बिना सरकारी मदद, ग्रामीण संस्कृति को संजीवनी
ईचा के इस आयोजन की सबसे प्रेरणादायक बात यह है कि बिना किसी सरकारी आर्थिक सहायता के, यह छऊ उत्सव आज भी परंपरा, भक्ति और लोक कला को जीवित रखे हुए है। यह गाँव के सामूहिक प्रयास और सांस्कृतिक प्रतिबद्धता का अनुपम उदाहरण है, जहाँ ग्रामीण समाज अपनी सांस्कृतिक पहचान को आत्मगौरव के साथ आगे बढ़ा रहा है।