खरसावां शहीद पार्क 365 दिनों में मात्र एक दिन शहीद
दिवस पर खुलता है पार्क, सालभर झाड़ियों में रहता है तब्दील,
साफ-सफाई पर प्रतिवर्ष लगभग दस लाख होता है खर्च,
Kharsawan Shaheed Park खरसावां के वीर शहीदों को श्रद्वाजंलि देने के लिए खरसावां में बना शहीद पार्क साल के 365 दिन में सिर्फ एक दिन खुलता है। मात्र एक दिन के लिए लाखों रूपये खर्च करके पार्क की साफ-सफाई, रंगाई-पुताई करवाई जाती है। शहीद वेदी को फुलों से सजाया जाता है। कारपेट बिछाया जाता है। पार्क में लगे पेड़-पौधे की छटाई, फुल लगाये जाते है। इसके बाद सब भुल जाते है। सालभर झाड़ियों में तब्दील रहने वाला शहीद पार्क की साफ-सफाई और प्रतिवर्ष 1 जनवरी को आयोजित होने वाले खरसावां शहीद दिवस पर विभिन्न मदों से लगभग दस लाख रूपया खर्च कर दिये जाते है। शहीद पार्क की साफ-सफाई होने पर पार्क का नजारा कुछ ओर रहता है। साथ ही झाड़ियों में तब्दील होने पर पार्क का नजारा कुछ ओर होता है। लाखो खर्च होने के बावजूद खरसावां शहीद पार्क आम जनता के लिए सिर्फ एक दिन एक दिन खुलता है। साथ ही 364 दिन बंद पड़ा रहता है। अलग झारखंड राज्य के अस्तित्व से जुड़ा खरसावां का ऐतिहासिक शहीद पार्क रख-रखाव के अभाव में सालोभर झाड़ियों में तब्दील रहता है। साल कं अंत नवबंर एवं दिसबंर आते स्थानीय प्रशासन शहीद पार्क की साफ-सफाई में जुट जाती है। बता दे कि शहीद पार्क में लगे पेड़-पौधे, हरियाली, फूलों की क्यारियां एवं रंग बिरंगे फव्वारे समेत बच्चों के मनोरंजन के बनाये गयी तरह-तरह की आकृतियां व झूले नष्ट होने के कगार पर पहुच जाती है। पार्क के सड़क पर घास उग जाते है। झूलों पर जंग लगने लगता है। शहीद पार्क झाडियों में तब्दील हो जाता है। लगभग दो करोड़ के खर्च पर खरसावां वन विभाग के द्वारा शहीद पार्क वर्ष 2016 बनाकर तैयार किया। लेकिन पार्क का लाभ खरसावां की जनता नही उठा सकी। सिर्फ शहीद आत्माओं तक ही शहीद पार्क सिमित रहा। आम जनता के लिए आज तक पार्क नही खुल पाया है। इस पर खरसावां प्रखंड बिकास पदाधिकारी प्रधान माझी ने कहा कि शहीद पार्क की रखवाली, साफ-सफाई, रंग रोगन आदि पर सात लाख खर्च हो जाता है। अगर मुख्यमंत्री का आगमन होने पर खर्च बढ जाती है।
प्रतिवर्ष पहली जनवरी को खुलता है शहीद पार्क
प्रतिवर्ष पहली जनवरी को खरसावां में होने वाले शहीद दिवस पर ही शहीद पार्क को खोला जाता है। शहीद दिवस में मुख्यमंत्री के खरसावां आने की संभावना को ध्यान में रखते हुए आन-फान में प्रशासन के द्वारा पार्क की साफ-सफाई, रंगाई-पुताई करवाया जाता है। पार्क को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। जैसे ही पहली जनवरी की रात गुजर जाती है। स्थानीय जनप्रतिनिधि सहित प्रसाशन शहीद पार्क को भुल जाते है। इसके बाद 364 दिनों तक शहीद पार्क के गेट पर ताला झुलता रहता है।
शहीद पार्क के गार्ड को नही 13 माह से मानदेय
खरसावां शहीद पार्क की रखवाली कर रहे सिक्योरिटी गार्ड शिव कुमार नापित को लगभग 13 माह से मानदेय (मजदूरी) नही मिला है। पिछले वर्ष नवबंर-2023 तक का मानदेय मिला था। लगभग 13 माह से मानदेय नही मिलने से उसके परिवार के भरण पोषण में कई कठिनाई का सामना करना पड रहा है।
वर्ष 2012 को हुआ था शहीद पार्क का शिलान्यास
वर्ष 2011 में तत्कालिन मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा की सरकार ने शहीद स्थल सौंदयींकरण योजना 2011-12 के तहत खरसावां शहीद स्थल निमार्ण कार्य के लिए 1.72 करोड की स्वीकृति दिया था और 26 नवबंर 2012 को खरसावां शहीद स्थल पर साप्ताहिक हाट के दुकानदारों के विरोध के बीच खरसावां शहीद पार्क का शिलान्यास किया गया था।
1 जनवरी 2016 को हुआ था शहीद पार्क का लोकार्पण
लगभग 2 करोड की लागत से खरसावां वन विभाग के द्वारा तैयार किया गया शहीद पार्क का लोकार्पण विगत 1 जनवरी 2016 को तत्कालिन मुख्यमंत्री रघुवर दास, तत्कालिन सांसद कड़िया मुंड़ा और विधायक दशरथ गागराई के द्वारा किया गया था।
बच्चो के झूलो में लग चुका है जंग
शहीद पार्क के अंदर बच्चों के खेलने एवं मनोरंजन के लिये विशेष सुविधाओं वाला चिल्ड्रेन पार्क बनाया गया है। इसमें तरह तरह के झूले लगे हैं। घोड़े का झूला में घोड़ा टूट कर खत्म हो गया है। सिर्फ लोहा ही बचा है। दूसरे झूले का बीम टूटा हुआ है। प्लास्टिक की स्लाइड टूट गयी है।
पार्क में यह था सुविधा
चिल्ड्रन कार्नर 2, लाइट फाउंटेन 2,षेल्टर, रेस्ट हाउस, कम्यूनिटी हॉल, लिटिल पुल, विष ब्रिज, राउड चबूतरा, फलावर बैड, सिटिंग बेंच, टॉयलेट, पानी टंकी, डिंªकिंग वाटर सिस्टम, रेस्ट हाउस, लीली पोईट, कार पाकिंग ओपेन थेटर, मेरिटेषन हाल, चौकीदार कक्ष, किचन, संड़क, बाउंड्री सोलर लाईट, ग्रेट, फूल, पौधे, घास, आदि सुविधा था।
गुलाब वाटिका में खुशबू ही नहीं
पार्क में गुलाब वाटिका है। जिसमें दर्जनों प्रकार के गुलाब के फूल लगे हुए थे। इस वाटिका में गुलाब कम दिखते हैं, गाजर घास के दिन फिरे हैं। जब वाटिका में सभी गुलाब खिलते हैं तो अधिक पर्यटक इसके करीब ही कुछ देर रहने का मन बनाते थे। लेकिन यहां गुलाबों की कंटीली डार बची है।