खरसावां में नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के
दूसरे दिन शिव-पार्वती विवाह के प्रसंग में भावविभोर हुए श्रोता,
शिव बारात और विवाह गीत पर जमकर नाचे श्रद्धालु,
kharsawan खरसावां पंचायत भवन प्रांगण में श्री रामकृष्ण कथा कमिटि बेहरासाई के द्वारा आयोजित नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के दूसरे दिन कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया गया। श्रीराम कथा में पूजन पश्चात कथावाचक दीदी दिव्यांशी ने श्रीराम कथा के द्वितीय दिन शिव-पार्वती विवाह प्रसंग का सुंदर वर्णन किया। शिव एवं पार्वती के विवाह प्रसंग से पंडाल पूरी तरह से भक्तिमय नजर आया। कथा के दौरान बीच-बीच में भजन प्रस्तुत किया गया।
दीदी दिव्यांशी ने शिव-पार्वती के शुभ विवाह का रोचक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह दिव्य है। माता पार्वती की कठिन तपस्या का परिणाम है कि भगवान शिव ने अपनी शक्ति के रूप में चयन किया। कहा कि माता पार्वती बचपन से ही बाबा भोलेनाथ की अनन्य भक्त थीं। एक दिन पर्वतराज के घर महर्षि नारद पधारे और उन्होंने भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती के विवाह का संयोग बताया। शिव पार्वती के विवाह की कथा का श्रवण कराते हुए उन्होने ने कहा कि नंदी पर सवार भोलेनाथ जब भूत-पिशाचों के साथ बरात लेकर पहुंचे तो माता पार्वती के माता-पिता बारात में सम्मिलित भूत, प्रेत औघड़ को देखकर अचंभित रह गए। भगवान शिव स्वयं नंदी पर विराजमान थे और गले में नाग की माला धारण किए हुए थे। साथ में भगवान विष्णु और ब्रह्माजी भी देवताओं की टोली लेकर चल रहे थे। त्रिलोक शिव विवाह के आनंद से मगन हो रहा था। हर तरफ शिवजी के जयकारे लग रहे थे। बारात नगर भ्रमण करते हुए देवी पार्वती के पिता राजा हिमवान के द्वार पहुंची। बारात के स्वागत के लिए महिलाएं आरती की थाली लेकर आयीं। भगवान शिव की सासु मां मैना देवी अपने दामाद की आरती उतारने दरवाजे पर पहुंची। भगवान शिव की सामने जब मैना पहुंची तो शिवजी का रूप देखकर चकरा गईं। उस पर शिवजी ने अपनी और लीला दिखानी शुरू कर दी। शिवजी के नाग ने फुफकार मारना शुरू किया तेज हवा से मैने वस्त्र अस्त-व्यस्त होने लगे। मैना वहीं अचेत होकर गिर गईं। मैना को जब होश आया तो उन्होंने शिवजी के साथ अपनी सुकुमारी कन्या देवी पार्वती का विवाह करने से मना कर दिया। मैना ने कहा कि देवी पार्वती सुकुमारी को बाघंबरधारी, भस्मधारी मसानी को नहीं दे सकती। माता को व्याकुल देख पार्वती समझ गईं कि यह सब शिवलीला के कारण हो रहा है। श्रीराम कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं के समक्ष भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के प्रसंग का व्याख्यान करते हुए कथावाचक ने कहा कि माता-पिता से आज्ञा लेकर देवी पार्वती जनवासे में गईं जहां शिवजी विराजमान थे। देवी पार्वती भगवान शिव से बोली के ‘हे प्रभु आप अपनी लीला समेटिए’, मेरी माता आपका मसानी रूप देखकर व्याकुल हो रही हैं। हर माता की तरह उनकी भी इच्छा है कि उनका दामाद सुंदर और मनमोहक हो इसलिए आप अपने दिव्य रूप को प्रकट कीजिए। माता पार्वती की मनोदशा समझकर शिवजी ने अपनी लीला समेट ली और भगवान विष्णु और चंद्रमा ने मिलकर भगवान शिव को दूल्हे के रूप में तैयार किया। भगवान शिव अपने चंद्रमौली रूप को धारण करके सबका मन मोह रहे थे। देवी मैना ने जब शिवजी का चंद्रमौली रूप देखा तो निहारती रह गईं। उन्हें अपने नेत्रों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। वह खुशी-खुशी शिवजी के विवाह की तैयारी करने लगीं और माता पार्वती ने खुशी से भोलेनाथ को पति के रूप में स्वीकार किया। विवाह प्रसंग सुन श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।