खरसावां में संगीतमय श्रीराम कथा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं
की जुटी भीड़, सीता खोज से लेकर रावन बध का हुआ वर्णन
रामायण हमें जीने का तरीका सिखाती है- दिव्यांशी
kharsawan खरसावां पंचायत भवन प्रांगण में श्री रामकृष्ण कथा कमिटि बेहरासाई के द्वारा आयोजित नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के अंतिम दिन हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जुट गयी। कथावाचक दीदी दिव्यांशी जी ने अंतिम दिन की कथा में सीता खोज, सुदरकांड, लंका दहन, सेतु बंधन, लंका दहन, रावन बध राम-रावण युद्ध, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के प्रसंग का वर्णन किया। कथावाचक ने बताया कि रामायण हमें जीने का तरीका सिखाती है। रामायण हमें आदर्श, सेवा भाव, त्याग व बलिदान के साथ दूसरों की संपत्ति पर हमारा कोई अधिकार नहीं है, की सीख देती है। इस प्रकार भगवान श्रीराम ने दीन-दुखियों, वनवासियों के कष्ट दूर करते हुए उन्हें संगठित करने का कार्य किया एवं उस संगठन शक्ति के द्वारा ही समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर किया। इसलिए हर राम भक्त का दायित्व है कि पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान करें। कथा वाचक दिव्यांशी द्वारा भगवान श्री राम के राज्याभिषेक का वर्णन व राम दरबार की आकर्षक झांकी प्रस्तुति पर पूरा कथा पंडाल राजा रामचंद्र की जय के जयकारों से गूंज उठा। कथा वाचक ने कहा की बुराई और असत्य ज्यादा समय तक नहीं चलता है। अंतत अधर्म पर धर्म की जीत होती है। भगवान श्रीराम ने सत्य को स्थापित करने के लिए रावण का वध किया। कथा वाचक ने कहा कि श्री राम कथा के माध्यम से व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों को बदलने का प्रयास करना चाहिए। राम कथा भक्त को भगवान से जोड़ने की कथा है। भगवान की कथा हमें बताती है कि संकट में भी सत्य से विमुख न हो व अपने वचन का पालन करें। उन्होने कहा कि माता-पिता की सेवा, गुरु जन का सम्मान, गौ माता का वास तथा ईश्वर का स्मरण जिस घर परिवार में होता है। वह स्वर्ग के समान है। कथा के दौरान रामायण पूजन व आरती के बाद भक्तजनों के बीच महाप्रसाद का वितरण किया गया।
सीता खोज प्रसंग की सुन भावुक हुए श्रोता
कथावाचक दीदी दिव्यांशी ने कहा कि निष्ठा, लगन व भक्ति से किया गया कोई कार्य कभी व्यर्थ नहीं होता। प्रवचक ने हनुमान जी के कार्य निष्ठा लगन भक्ति की व्याख्या विस्तार से करते हुए कहा कि प्रभु को निष्ठावान व्यक्ति अतिप्रिय है। सुंदरकांड को विस्तार रूप से बताते हुए सीता खोज व अशोक वाटिका प्रसंग की कथा सुनाई। जिसे सुन श्रोता भावुक हो गए। बताया कि जैसे श्रीरघुनाथ जी के बाण अमोघ हैं वैसे हनुमान जी के कार्य और लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में प्रयत्न भी अमोघ होता है। हनुमान जी ने सीता जी की खोज ही नहीं की बल्कि वानर-भालू के प्राणों की रक्षा भी की। प्रवचक ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वनवास के दौरान लंका का राजा रावण माता सीता का हरण कर ले गया। सुग्रीव की सहायता से माता सीता की खोज में वानर दल चारों दिशाओं में भेजे गए। दक्षिण की ओर जामवंत हनुमान जी और अंगद को भेजा गया। समुद्र को लांघने में कोई समर्थ नहीं रहा तो यह कार्य हनुमान ने किया। लंका में पहुंचकर विभीषण से भेंट, माता सीता के पास अशोक वाटिका पहुंचना, वाटिका विध्वंस, अक्षय कुमार का वध। लंका दहन समेत अन्य प्रसंग को विस्तार पूर्वक सुनाया। माता सीता से निशानी लेकर भगवान राम के पास पहुंचकर सीता का संदेश प्रभु को हनुमानजी महाराज ने सुनाया। कथा सुन बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।
महासागर में पूँछ की आग बुझा देते हैं।
श्रीराम कथा में लंका दहन का हुआ वर्णन
सीता माता का हरण कर रावण उन्हें लंका ले जाता है। हनुमान जी समुंद्र लांघकर लंका में प्रवेश कर देते हैं। रावण के पुत्र अक्षय कुमार का हनुमान वध कर देते हैं। जिसके बाद मेघनाथ उन्हें बंधक बनाकर दरबार में ले जाते हैं। जहां रावण उनकी पूछ में आग लगवा देते हैं। जिस पर वीर हनुमान पूरी लंका को जला देते हैं। कथा में भक्तों को सेतु बंध, प्रभु लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने आदि कथा का प्रसंग सुनाया गया। श्रीराम की कथा सुनकर श्रद्धालु झूम उठे।