खरसावां के पदमपुर में मां काली की पूजा-अर्चना के लिए उमड़ी श्रद्वालुओं की भीड
The famous Padampur fair of Kharsawan, खरसावां कें प्रसिंद्व पदमपुर तेलीसाई मां काली मेला 124 साल पुरानी है। प्रतिदिन सात दिनो तक चलने वाली मां काली मेला मे भक्तों की भीड उमडने लगी। मेला के पांचवे दिन काली मां के भक्तों में कोई कमी नही आई। झारखंड के विभिन्न्ा जिलों से मंा काली कें दर्शन के लिए श्रद्वालुओं उमड पडे। मां काली की दर्शन को लेकर श्रद्वालु घंटो लम्बी कतार में खडे रहे। साथ ही तांत्रिक विधि से मां काली की पूजा-अर्चना कर अपने परिवार व समाज की सुख शांति की प्रार्थना किया। मां काली के दरबार से कोई खाली हाथ नही लौटता है। सैकड़ों भक्तों मे अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर मां काली के दरबार में बकरे की बलि दी। मेले में मंा काली कें दर्शन के लिए श्रद्वालुओं का खरसावां, कुचाई, राजनगर, खूंटपानी, सरायकेला, गम्हारिया, चक्रधरपुर, चाईबासा, बडाबम्बो सहित पूरे झारखण्ड, बिहार, ओडिसा से आना जारी है। इसके पश्चात भक्तों ने पदमपुर में चल रहे सात दिवसीय मेला का भी लुफ्त उठा रहे है। मेला सह पुजा अर्चना 6 नवंबर तक चलेगी।
भक्तों के मनोरंजन के लिए लगी कई झुलाश्री श्री 108 श्री जय काली मां पूजा कमिटि पदमपुर काली मेला में भक्तों के मनोरंजन के लिए आदिवासी डामा, सर्कस, बुग्गी बुग्गी, आसमानी झुला, मौत का कुआ, चादं तारा झुला, छोटा झुला, फाटो स्टुडियो, चाट स्आल, खिलोने की दुकान, मुर्गा पाडा, मनिहारी दुकान, चुडियो की दुकान, का्रसमेब्कि की दुकान, चप्पल जुते की दुकान, गुडा गुडियो की दुकान, नाव झुला, आदि लगा है।
विधि-व्यवस्था हेतु प्रशासन सर्तकखरसावां के पदमपुर-तेलीसाई काली मेला को लेकर प्रशासन सर्तक है। प्रखंड विकास पदाधिकारी प्रधान माझी एवं थाना प्रभारी गौरव कुमार के नेतृत्व में मेला के विधि-व्यवस्था की जिम्मेदारी है। मेला में सुरक्षा के दृष्टिकोण से जगह जगह सीसीटीवी कैमरे लगाये गये है। इसी से मेला में विशेष नजर रखी जा रही है। जगह जगह सुरक्षा हेतु जवान तैनात है। कई पदाधिकारियों की प्रतिनियोजित किया गया है।
मां काली की स्थापना 1897 में हुई थी
खरसावां के पदमपुर तेलीसाई में देवी मां काली की स्थापना 1897 में कर पूजन प्रारंभ किया गया था। यह मेला प्रत्येक वर्ष काली पूजा के अवसर लगता हैं। लोगो का विश्वास है कि सच्चे मन से देवी मंा काली के दरबार में जो भी भक्त मंागता है। उसकी मुराद्व जरूर पुरी होती हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर लोग बकरे की बलि चढाकर देवी को प्रसन्न करते है।