खरसावां-कुचाई में उदयमान सूर्य को अध्र्य देने के
साथ आस्था का महापर्व छठ संपन्न्, उगीं हे सूरज देव, भइल अरगिया के बेर…,
Chhath, the great festival of faith, is over. संसार का यह चलन है कि सभी उगते सूरज की ही पूजा करते हैं। लेकिन विश्व का यह पहला पर्व है जहां उगते सूर्य के साथ डूबते सूरज की भी पूजा होती है। उगीं हे सूरज देव, भइल अरगिया के बेर…,मारबउ रे सुगवा धनुष से …कांच की बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए… होख न सुरुज देव सहइया… बहंगी घाट पहुंचाए…जैसे कर्णप्रिय लोक गीतों के साथ कल अस्ताचलगामी एवं आज उदयगामी सूर्य को अध्र्य अर्पित करने के साथ ही आस्था का महापर्व छठ संपन्न हुआ।
वही पूरा खरसावां-कुचाई भक्तिमय हो गया। धार्मिक मान्यता है कि छठ महापर्व में नहाए-खाए से पारण तक व्रतियों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है। इसके साथ ही 36 घंटे के छठ व्रत का समापन भी हुआ। षष्ठी की तिथि को बिना अन्न जल ग्रहण किये महिलाएं संध्या सिर पर पूजा के सामान लिए पुरुष आगे आगे तथा उनके घर व्रत रखने वाली महिला पीछे पीछे। साथ में सपरिवार खरसावां, आमदा व कुचाई के सोना नदी व तलाब के घाटों तक श्रद्घा की धारा हिलोरे मारती रही। जैसे ही सूर्य के अस्त होने का समय हुआ, गंगा जल और गाय के दूध से डूबते सूर्य को अध्र्य देने का सिलसिला शुरू हो गया। एक साथ सैकड़ों महिलाओं ने अघ्र्य देकर अपने परिवार की सलामती की प्रार्थना की। रात्रि भर उपवास के बाद शुक्रबार सुबह सैकड़ों की संख्या में लोग छठ घाटों पर पहुंच गया। पूरी श्रद्वा के साथ उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया गया। प्रसाद में तमाम प्रकार के फल, ठेकुवा आदि चढ़ाए गए। घाट जाने वाले रास्ते पर छठ मैया से संबंधित गीत गूंज रहे थे।