खरसावां में श्रीराम कथा के पांचवे दिन सीता स्वयंवर और सीता-राम विवाह प्रसंग से भावविभोर हुए श्रद्धालु, धूमधाम से जनकपुर पहुंची बारात, लोगों ने बरसाये फूल, लगाये जय सियाराम के जयकारे,
Kharsawan खरसावां पंचायत भवन प्रांगण में श्री रामकृष्ण कथा कमिटि बेहरासाई के द्वारा आयोजित नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के पांचवे दिन सीता स्वयंवर और सीता-राम विवाह का प्रसंग सुनाया।कथावाचक दीदी दिव्यांशी जी ने भगवान श्रीराम द्वारा धनुष भंग, परशुराम, लक्ष्मण संवाद एवं श्री राम विवाह की रोचक प्रसंगों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
उन्होंने कहा कि कथा सुनने से जीवन की हर व्यथा मिट जाती है। राम विवाह एक आदर्श विवाह है। तुलसीदास ने राजा दशरथ, राजा जनक, राम व सीता की तुलना करते हुए बताया है कि ऐसा समधी, ऐसा नगर, ऐसा दुल्हा, ऐसी दुल्हन की तीनों लोक में कोई बराबरी नहीं हो सकती। कथावाचक दिव्यांशी ने कहा कि विश्वामित्र ने जब पूरे उत्तर भारत को दुष्टजनों से श्रीराम द्वारा मुक्त करा लिया एवं सभी ऋषि वैज्ञानिकों के यज्ञ सुचारू रूप से होने लगे तो विश्वामित्र श्रीराम को जनकपुरी की ओर ले गये जहां पर सीता स्वयंवर चल रहा कथा बताते हुए कहा कि राजा जनक ने अपनी बेटी के स्वयंवर के लिए एक प्रतिज्ञा रखी कि जो शिव पिनाक को खंडन करेगा वो सीता से नाता जोड़ेगा। उस धनुष को तोड़ने के लिए कई राजा व राजकुमार पहुंचे लेकिन सभी विफल रहें। ऐसे में राजा जनक ने भरी सभा में कहा कि आज धरती वीरों से विहिन हो गयी है, सभी अपने घर जाएं। इसके बाद लक्ष्मण को क्रोध आया और उन्होंने कहा कि अगर श्रीराम की आज्ञा हो तो धनुष क्या, पूरे ब्रह्मांड को गेंद की तरह उठा लूं। उन्होंने कहा कि धनुष अहंकार का प्रतीक है व राम ज्ञान का प्रतीक। जब अहंकारी व्यक्ति को ज्ञान का स्पर्श होता है तब अहंकार का नाश हो जाता है। श्रीराम में वो अहंकार नहीं था और श्रीराम ने विश्वामित्र की आज्ञा पाकर धनुष को तोड़ दिया, जिसका अर्थ पूरे विश्व में दुष्टों को सावधान करना था कि अब कोई चाहे कितना भी शक्तिशाली राक्षस वृत्ति का व्यक्ति हो वह जीवित नही बचेगा। धनुष टूटने का पता चलने पर परशुराम का स्वयंवर सभा में आना एवं श्रीराम-लक्ष्मण से तर्क-वितर्क करके संतुष्ट होना कि श्रीराम पूरे विश्व का कल्याण करने में सक्षम है। समाज की जो जिम्मेदारी परशुराम ने ले रखी थी जिससे कि दुष्ट राजाओं को भय था। परशुराम ने वह सामाजिक जिम्मेदारी श्रीराम को सौंप दी एवं स्वयं अपने आराध्य के भक्ति में लीन हो गये। कथावाचक ने आगे कहा कि भगवान कण-कण में विराजमान है। अगर हम समाज में दीन-दुखियों वनवासियों आदिवासियों के कष्ट दूर करते हए उस संगठित शक्ति के द्वारा ही सामाज में व्याप्त बुराईयों को दूर किये।इसी कारण से श्री राम भगवान कहलाये। उसी प्रकार आज भी समाज में व्याप्त बुराईयों को अच्छे लोग संगठित होकर ही दूर कर सकतें है। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए दीदी दिव्यांशी ने कहा कि राजा जनक ने राजा दशरथ को बारात लाने का न्यौता भेजा एवं राजा दशरथ नाचते गाते बारातियों सहित जनकपुरी पहुंचे। बारात में शामिल उपस्थित श्रोता जनसमूह खूब भावपूर्ण नाचे गाये। कथा में सीता-राम स्वंयवर का मनोरम झांकी के माध्यम से वर्णन किया गया। आगे राम कथा में मां सीता की बिदाई हुई। उन्होंने कहा कि जनकपुर से जब सीताजी की बिदाई हुई तब उनके माता-पिता ने उन्हें ससुराल में कैसे रहना है इसकी सीख दी। प्रत्येक माता-पिता को अपनी पुत्री के विवाह के समय ऐसी ही सीख देनी चाहिए। कन्या को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिये जिससे ससुराल व मायका दोनों कुल कलंकित हो। माता सीता ने पूरे जीवन अपने माता-पिता की सीख का पालन किया।